दो अलग-अलग घटनाओं में, उत्तर प्रदेश में मंगलवार को सीवेज लाइनों की सफ़ाई के दौरान चार सफ़ाई कर्मचारियों की मौत हो गई।
अख़बार ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के मुताबिक़ लखनऊ में, पूरन और करण की सआदतगंज इलाक़े में सीवेज लाइनों की सफ़ाई करते हुए मौत हो गई, जबकि दो अन्य, जो उन्हें बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे, को भी केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया है।
रायबरेली में भी ऐसी ही एक घटना हुई, जिसमें सरकारी योजना के तहत बनी सीवर लाइन की सफ़ाई के दौरान दो मज़दूरों की मौत हो गई।
पुलिस ने कहा कि मज़दूरों को सीवर से बाहर निकालकर ज़िला अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन वहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
नगर कोतवाली प्रभारी अधिकारी राघवन सिंह के अनुसार मृतकों की पहचान जोगेश और संजू नगर के रूप में हुई है। उन्होंने बताया कि उनका पोस्टमार्टम कराया जा रहा है।
अधिकारियों के अनुसार, सीवर लाइन का निर्माण अटल मिशन फ़ॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT) योजना के तहत किया जा रहा था। लखनऊ के एक आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मौतों पर दुख व्यक्त किया और अधिकारियों को हर संभव मदद देने का निर्देश दिया।
भारत में अब भी क्यों जारी है यह निर्मम प्रथा?
यह पहली बार नहीं है जब सीवरों की सफ़ाई के दौरान सफ़ाई कर्मचारियों की मौत हुई है। भारत में अन्य देशों की तरह मशीनों से सफ़ाई की सुविधा सरकारें अब तक मुहैया नहीं करवा पाई हैं।
पिछले साल, सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के कार्यकर्ता बेज़वाड़ा विल्सन ने ट्विटर पर बताया था कि 2016 से 2020 तक मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण 472 मौतें दर्ज की गई हैं।
भारत में Manual Scavengers and their Rehabilitation Act, 2013 (PEMSR) के तहत इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति के मानव मल को उसके निपटान, मैन्युअल रूप से साफ़ करने, ले जाने या अन्यथा किसी भी तरीके से संभालने के लिए उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
2013 में, सेप्टिक टैंक, खाई या रेलवे ट्रैक को साफ़ करने के लिए नियोजित लोगों को शामिल करने के लिए मैनुअल मैला ढोने वालों की परिभाषा को भी विस्तृत किया गया था। अधिनियम हाथ से मैला उठाने की प्रथा को “अमानवीय प्रथा” के रूप में मान्यता देता है और “हाथ से मैला ढोने वालों द्वारा झेले गए ऐतिहासिक अन्याय और अपमान को ठीक करने” की आवश्यकता का भी हवाला देता है।
हालांकि भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग पर रोक लगा दी गई है लेकिन इससे ज़मीनी हक़ीक़त पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। अधिनियम को लागू करने की कमीं और अकुशल मज़दूरों का शोषण भारत में अभी भी प्रचलित है।
इस तरह की अमानवीय प्रथाएं न केवल अपमानजनक हैं बल्कि आजीवन मानसिक रूप से मज़दूरों को अवसाद या चिंता से ग्रसित रखतीं हैं।
ऐसी निर्मम घटनाएं तथाकथित आधुनिक युग का जामा हमेशा खिंचती रहेंगी।