राष्ट्रपति बोलसोनारो की सनक से ब्राज़ील पर संकट, कोरोना की चपेट में पूरा देश

by MLP DESK
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दुनियाँ में कोरोना से सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में ब्राज़ील शामिल है जहाँ सबसे अधिक रोज़ 3 हज़ार से ज़्यादा मौतें हो रही हैं। कोरोना से हुए मौत के आँकड़ें बताते हैं कि यह संख्या 3 लाख के पार जा चुकी है और कुल संक्रमितों की संख्या सवा करोड़ से भी अधिक हो गयी है। ऐसे में चिंता की बात यह है बाक़ी देशों में वैक्सीन आ चुकी है जिसके चलते उम्मीद  भी जगी है कि कोरोना पर नियंत्रण हासिल किया जा सकेगा, लेकिन ब्राज़ील की सूरत इसके उलट है और इसका कारण हैं राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो।

क्या हैं ब्राजील के हालात?

देश में कोरोना के नए वैरिएंट के कारण संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है। हाल ही में मिले एफ़ 1 वैरिएंट ने ब्राज़ील की हालत ख़स्ता कर दी है। बताया जा रहा है कि यह वैरिएंट इतना ख़तरनाक है कि वैक्सीन इसपर निष्प्रभावी नज़र आ रहा है। इस वैरिएंट के चलते मौत की दर में बेहद ख़तरनाक़ रूप से बदलाव दिख रहा है। युवाओं पर यह वैरिएंट गहरा असर दिखा रहा है जिसके कारण युवा अधिक संक्रमित हो रहे हैं। अस्पतालों की स्थिती भी दयनीय है। संक्रमण के चलते भारी संख्या में लोग भर्ती हो रहे हैं जिसके चलते बेड मिल पाना मुश्क़िल हो गया है, यही वजह है कि मारीज़ों का इलाज कुर्सियों पर बिठाकर या गलियारों में हो रहा है।
दक्षिणी ब्राज़ील स्थित पोर्टो अलेग्रे के अस्पतालों में युवाओं की सँख्या पहले से कही अधिक बढ़ रही है। यहाँ के डॉक्टरों और नर्सों ने फ़रवरी से ही लॉकडाउन लगाने की सिफ़ारिश कर रहे हैं। इसपर पोर्टो अलेग्रे के मेयर ने बेहद गैरज़िम्मेदाराना बयान देते हुए कहा कि डॉक्टर्स अपनी जान दाँव पर लगाएँ जिससे देश की अर्थव्यवस्था बचाई जा सके। डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स इन ब्राजील की एक्जीक्यूटिव डायेरक्टर कहती हैं कि इससे पहले उन्होंने इतने बड़े स्तर पर  स्वास्थ्य व्यवस्था को विफल होते हुए नहीं देखा।
 देश के 26 राज्यों में से 16 में बेड की कमी है. रियो डी सुल (पोर्टो अलेग्रे शहर शामिल) में बेड के लिए वेंटिग लिस्ट (240 गंभीर रूप रोगियों के लिए) पिछले दो हफ़्तों में दोगुना हो गई है।
ख़बरों के मुताबिक़ ब्राज़ील की हालत इतनी ख़राब हो चुकी है कि लोग क़ब्रिस्तानों के लिए लड़ने लगे हैं और ज़्यादा से ज़्यादा ज़मीन को क़ब्रिस्तान बनाने का भी सुझाव दिया जा रहा है।
बता दें कि मेयर पिछले साल एक अभियान चलाया था कि शहर से वह सभी प्रतिबंधों को हटा देंगे। उनका कहना था कि लॉकडाउन के कारण लोग भूखे मरने लगेंगे। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि हमारी अर्थव्यवस्था का 40 फ़ीसद श्रम बल अनौपचारिक है, इनमें ऐसे लोग भी हैं जिन्हें रात में खाना खाने के लिए बाहर जाकर काम करने की ज़रूरत पड़ती है।

 बोल्सोनारो की तानाशाही

राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो शुरू से ही कोरोना वायरस के ख़तरे को नज़रअंदाज़ करते रहे हैं। बोल्सोनारो कह चुके हैं कि तालाबंदी उस देश के लिए सही नहीं है जहाँ इतने लोग ग़रीबी में रह रहे हैं। कई राज्यों ने पिछले कुछ हफ़्तों में व्यापार को बंद करने के आदेश ज़रूर दिए हैं, लेकिन बोल्सोनारो के समर्थक अस्पतालों के बाहर हॉर्न बजाकर इसका विरोध भी कर‌ रहे हैं।
बोलसोनारो मास्क को शुरुआत से ही बेकार की चीज़ मानते आ रहे हैं। कोरोना के सम्बंध में तरह-तरह की कॉन्सपिरेसी थ्योरी बनाते और बयान देते रहते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आरंभ से ही सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क को बढ़ावा दिया गया होता तो बार-बार लॉकडाउन लगाने जैसी स्थिति नहीं बनती।

वैक्सीन का भी विरोध

कोरोना के कहर से बचने के लिए जब पूरी दुनिया वैक्सीन के लिए क़रार करने में जुटी थी तब बोल्सोनारो वैक्सीन का मज़ाक उड़ा रहे थे। कभी वो इस वायरस को मिजल्स कहते तो कभी मलेरिया की दवा लेने को कहते। उन्होंने एंटी पारासाइट को भी कोरोना की दवा बता दिया।
पिछले साल जब फ़ाइजर ने बोल्सोनारो को करोड़ों वैक्सीन डोज़ ऑफ़र किए तो उन्होंने इसे भी गंभीरता से नहीं लिया। बताया जाता है कि आज जिस कोरोनावैक पर ब्राज़ील निर्भर है, उसकी ट्रायल में नाकामी पर बोल्सोनारो ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा था कि अगर वैक्सीन से लोग घड़ियाल बन जाएँ तो दवा कंपनी ज़िम्मेदार नहीं होगी।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ब्राजील का नेतृत्व करने वाले बोलसोनारो ने पहले महामारी के ख़तरे को नकारा, फिर ऐहतियात नहीं बरती और आखिर में चमत्कारी दवाओं की पैरवी की। इससे जनता कंफ्यूज़ हुई और कोरोना को हल्के में लिया, सड़कों पर निकली, भीड़ लगाई और कोरोना को आमंत्रण दिया।
इन सबके बीच आग में घी का काम कर रही है ‘फ़ेक न्यूज़’ जिसने वैक्सीन को लेकर भी लोगों में डर पैदा कर दिया है। अफ़वाहें ये भी उठतीं हैं कि वायरस से ज़्यादा वैक्सीन जानलेवा है। ऐसे में जो वैक्सीन लगवा सकते हैं वे भी इससे दूर भाग रहे हैं।

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