क्या डेढ़ साल बाद अब आपके बच्चे की सीखने की क्षमता में कमीं आ गई है? कैसी है डिजिटल डिवाइड की ये खाई?

by MLP DESK
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डेढ़ साल बाद अब देशभर में एक बार फिर स्कूल खुल रहे हैं और इसी के साथ विभिन्न राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों(UTs) के शिक्षकों ने कहा कि वे छात्रों के बीच सीखने के स्तर में ‘अभूतपूर्व’ कमीं देख रहे हैं, खासकर उन लोगों में जो डिजिटल डिवाइड के कारण उनसे नियमित संपर्क में नहीं थे।

 

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वो छात्र जो अपने परिवार में पहली पीढ़ी हैं जो पढ़ सके हैं उनके पास घर में पढ़ाई में मदद करने के लिए कोई नहीं है। ऐसे में उन्हें सबसे ज़्यादा नुक़सान झेलना पड़ा है। ऐसे अधिकांश छात्रों के पास ऑनलाइन कक्षाओं के लिए स्मार्ट फ़ोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी भी नहीं थी।

यहां तक ​​​​कि स्कूलों ने उन्हें नोट्स और अध्ययन सामग्री दी, फिर भी वे फिज़िकल क्लास के बिना विषयों की समझ विकसित नहीं कर सके। इस सब ने उनके बीच सीखने की एक बड़ी खाई खोद दी है जो अब अपनी क्लासों में लौटने के बाद एक चुनौती बन गई है।

झारखंड के खूंटी ज़िले के एक गांव में एक सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में गणित के शिक्षक जगन कुमार ने कहा, हमारे अधिकांश छात्र इस श्रेणी में आते हैं।

 

लड़कियों पर पड़ा ज़्यादा बुरा प्रभाव

कुछ शिक्षकों ने यह भी कहा कि उन्होंने एक डिजिटल विभाजन देखा है। इसका ज़्यादा नुक़सान लड़कियों के हिस्से आया है। कुछ शिक्षक बताते हैं, ‘हमारी कई छात्राओं ने शिक़ायत की है कि उनके घर में स्मार्टफ़ोन होने के बावजूद उनकी उस सुविधा तक पहुंच नहीं है। या तो उनके भाई उनका इस्तेमाल कर रहे हैं, या परिवार के सदस्य उन्हें लड़कियों को पढ़ाई के लिए देना ज़रूरी नहीं समझते।’

हरियाणा के पानीपत ज़िले के एक शिक्षक ने कहा कि अब जब वे कक्षाओं में लौट आए हैं, तो हमें उनके मुद्दों को हल करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।

उनका सुझाव है कि जैसे-जैसे देशभर में स्कूल खुलते हैं, शिक्षकों को छात्रों की अवधारणात्मक समझ को ठीक से जानने के लिए यथार्थवादी मूल्यांकन करने की ज़रूरत है, न कि ‘पाठ्यक्रम के रटाने’ की।

अकेले यह उपाय ही स्कूलों को बच्चों के संज्ञानात्मक स्तर तक पहुंचने और उन्हें सिखाने में मदद कर सकता है। यह भी एक तथ्य यह है कि जिन लोगों के पास ऑनलाइन सीखने की सुविधा थी उन्होंने भी वैचारिक समझ हासिल नहीं की है।

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