यूपी में तीसरे चरण में सपा को गढ़ बचाने की चुनौती, करहल बना राजनीतिक दंगल का केंद्र

by MLP DESK
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यूपी में विधानसभा चुनाव की लड़ाई तीसरे चरण में पहुंच चुकी है. इस चरण में जहां-जहां चुनाव होने हैं उनमें से अधिकतर सीटों को सामाजवादी पार्टी का मजबूत गढ़ कहा जाता है, जो अखिलेश यादव को पिता मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक विरासत में सौंपा था.

 

 

अखिलेश ने 2017 में बीजेपी की लहर और एंटी इनकंबेंसी के चलते अपने गढ़ में भी हार का सामना करना पड़ा था. तीसरे चरण में 16 जिलों की 59 सीटों पर 20 फरवरी को वोटिंग होने जा रही है. इसमें पश्चिमी यूपी का यादवलैंड कहे जानें वाले फिजोजाबाद, इटावा, मैनपुरी, कासगंज, हाथरस और एटा में चुनाव होने जा रहा है. इसके अलावा अवध और बुन्देलखण्ड में भी तीसरे चरण में ही मतदान प्रस्तावित है.
जिन 59 सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से 2017 में 49 बीजेपी, 8 सपा, 1 कांग्रेस और 1 बीएसपी ने जीती थी.

क्या अखिलेश यादव के लिए करहल बन जाएगा नंदीग्राम?

आज पश्चिम बंगाल का नंदीग्राम किसी पहचान का मोहताज नहीं है. बीते पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने जैसी ही नंदीग्राम सीट से लड़ने का फ़ैसला लिया, वैसे ही बीजेपी ने उनके खिलाफ़ शुभेन्दु अधिकारी के रुप में चुनौती पेश कर दी. विधानसभा चुनाव में टीएमसी तो जीती लेकिन ममता बनर्जी को हार का सामना करना पड़ा.

अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला अचानक नहीं लिया बल्कि पार्टी की सोची समझी रणनीति के तहत था. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव 2017 की हार के बाद अपने गढ़ में लौटना चाहते हैं जिससे पश्चिमी यूपी के यादवलैंड माने जानें वाले इस क्षेत्र में यादव वोटरों को एकजुट किया जा सके.

जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ा और दो चरणों का मतदान हुआ लगने लगा है कि कहीं अखिलेश यादव ने बड़ा फ़ैसला तो नहीं ले लिया, क्या ये फ़ैसला अखिलेश को मुख्यमंत्री बनने से पहले विधायक बनने से ही ना रोक दे.

इसकी सबसे बड़ी वजह बीजेपी ने अखिलेश यादव के खिलाफ़ मजबूत चुनौती पेश की. बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को करहल में उतारकर कड़ा संदेश दिया है कि उनकी नज़र आम सीट से लेकर वीआईपी सीटों को जीतने का समान प्रयास है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जो अखिलेश यादव करहल को यादवलैंड की धुरी बनाना चाहते थे अब उन्हीं का चुनाव फंसता हुआ लग रहा है.

हालांकि एसपी सिंह बघेल पहले भी मुलायम सिंह यादव के परिवार के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन जीत नहीं सके.

क्या कहता है करहल का जातिगत समीकरण ?

करहल की लड़ाई में यादव वोटर ही निर्णायक भूमिका में होते है. करहल में साढ़े तीन लाख मतदाता हैं जिसमें से तकरीबन सवा लाख मतदाता यादव ही हैं. इसके अलावा मुस्लिम 18 हजार, शेड्यूल कास्ट के 30 हजार, शाक्य 35 हजार, क्षत्रिय 30 हजार, ब्राह्मण 16 हजार और लोधी-वैश्य मतदाता 30 हजार हैं.
करहल सीट पर 1992 से 2022 तक सपा का कब्जा रहा है। ग़ौरतलब है कि केवल 2002 में बीजेपी से सोवरन यादव ने जीत दर्ज की थी.

लेखक: गौरव मिश्र

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