विशेष रिपोर्ट: क्या है कुछ स्पेनिश फ़्लू और कोरोना में समानता ?

by MLP DESK
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कोरोना माहमारी की शुरुआत से ही उसकी तुलना पहले की कई महामारियों से की जाती रही है विशेषकर 1918 में आये स्पेनिश फ़्लू से। दोनों में कुछ समानताये भी है।

कोरोना की ही तरह यह फ़्लू भी पहले कभी नहीं पाया गया और इसलिए यह बिल्कुल नया था। कोरोना की भांति यह एक इंसान से दूसरे इंसान में आसानी से फैल सकता था। इंसानों के भीतर इससे लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता नहीं थी और यह भी साँस लेने में कठिनाई पैदा करता था। इससे बचने का एक ही उपाय था, मास्क लगाना और शारिरिक दूरी बनाए रखना।

Credit- Healthline.com (Spanish Flu)

Covid 19 -Hospital

क्या है स्पेनिश फ़्लू का इतिहास?

इसके नाम से इतर, सबसे पहले इस फ़्लू का आगमन संयुक्त राष्ट्र, फ़्रांस, जर्मनी और यूके में हुआ। ज़्यादातर देश प्रथम विश्व युद्ध का वीभत्स रूप देख चुके थे और उससे उबरने का का प्रयास कर रहे थे। ऐसे में उन्होंने अपने देश की मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी। इन सबके विपरीत स्पेन ने युध्द के दौरान सामान्य स्थिति बनाये रखी थी जिस कारण उसकी मीडिया भी स्वतंत्र थी। यही वजह है कि सबसे पहले फ़्लू आने की ख़बर स्पेन से उठी और इसका नाम स्पेनिश फ़्लू पड़ गया।

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स्वास्थ्य के बारे में सैन जोस, कैलिफ़ोर्निया में सांता क्लारा वैली मेडिकल सेंटर में संक्रामक रोगों की एमडी और महामारी रोग विशेषज्ञ सुप्रिया नरसिम्हन ने कहा, “इस बारे में बहुत बहस है कि 1918 की इन्फ्लूएंजा महामारी वास्तव में कहां से उत्पन्न हुई।”

“मैं इसे ‘स्पैनिश’ फ़्लू नहीं कहना चाहती और इसे केवल भौगोलिक रूप से स्पेन से जोड़ना चाहती हूँ, क्योंकि इसे कलंक के रूप में देखा जा सकता है, जैसे कि अब हम कोविड -19 को ‘वुहान’ वायरस नहीं कहते हैं।”

कैसे फैला स्पेनिश फ़्लू?

संक्रामक रोग विशेषज्ञ अमेश ए. अदलजा, एमडी, जॉन्स ने जो कि हॉपकिंस सेंटर फ़ॉर हेल्थ सिक्योरिटी में वरिष्ठ सुरक्षाकर्मी हैं, ने वेबसाइट ‘हेल्थ’ को बताया कि 1918 के वायरस (इन्फ्लुएंजा ए सबटाइप एच 1 एन 1) और नए कोरोनोवायरस (एसएआरएस-सीओवी -2) अलग-अलग वायरल परिवारों से आते हैं।

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मिशन अस्पताल में संक्रमण की रोकथाम के चिकित्सा निदेशक और ऑरेंज काउंटी, कैलिफ़ोर्निया में सेंट जोसेफ़ अस्पताल के एम.डी चार्ल्स बेली बताते हैं कि इन दोनों ही महामारियों के संचरण का तरीका बहुत समान है। वे दोनों मुख्य रूप से श्वसन बूंदों और एरोसोल (हवा में तरल बूंदों का एक निलंबन) के माध्यम से फैले हुए हैं। वे कहते हैं, “यह नज़दीक़ आने या आमने-सामने होकर बात करने से संक्रमण होने की आशंका को और बढ़ा देता है।”

कब तक रहा यह फ़्लू?

सेन्टर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल के मुताबिक़ 1918 में आया यह इन्फ़्लुएन्ज़ा तक़रीबन दो साल तक रहा और इसकी तीन वेव आयी। पहली लहर मार्च 1918 में शुरू हुई और इसकी विनाशकारी दूसरी लहर दिसंबर 1918 में आई। इसके बाद सबसे घातक लहर 1919 में ऑस्ट्रेलिया में आई और अमेरिका और यूरोप में इसने सबसे ज़्यादा तबाही मचाई। अंततः1919 की गर्मियों तक, तीसरी लहर थम गई।

अब सवाल ये उठता है कि फ़्लू गया कैसे? दरअसल कहा जाता है कि यह कभी गया ही नहीं बल्कि 1920 आते-आते इंसानों में इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गयी।

स्पेनिश फ़्लू के दौरान लोगों ने कबतक पहने मास्क?

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, 1918 में स्वास्थ्य अधिकारियों ने लोगों से बीमारी के प्रसार को धीमा करने के लिए मास्क पहनने का आग्रह किया। उन दिनों मास्क रेशमी कपड़ों और चीज़क्लोथ से बने होते थे। जिन लोगों ने उन्हें पहनने से इनकार कर दिया, उन्हें शहरों में जुर्माना, यहां तक ​​कि कारावास का सामना करना पड़ा।

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तत्कालीन समय में मास्क को एक ‘डर्ट ट्रैप’ कहा करते थे और प्रायः उसमें एक छेद रहता था जिससे कि वे सिगार पी सकें। उस दौरान यूरोप में मास्क पहनना देशभक्ति का सूचक बनकर उभरा। फिर भी, कई लोगों ने मास्क का विरोध किया जैसा कि आज कोरोना के दौरान भी हो रहा है।

स्पेनिश फ़्लू के लक्षण

डॉ. बेली का कहना है कि स्पैनिश फ़्लू और कोविड-19 दोनों ही बुखार, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द और सांस लेने के लक्षणों के साथ “इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियों” के रूप में प्रकट होते हैं। “एक लक्षण जो कोविड-19 से अलग है और मौसमी इन्फ्लूएंजा में नहीं देखा जाता वह है स्वाद या गंध की पहचान कर पाने में अक्षम होना”।

ब्रूस पोलस्की एनवाईयू लैंगोन अस्पताल में चिकित्सा के अध्यक्ष लॉन्ग आइलैंड कहते हैं कि कोरोना और स्पेनिश फ़्लू के लक्षणों में समानता एक बड़ी वजह है जिसके कारण डॉक्टरों का पूरा ज़ोर वैक्सीन लगाने पर है।

कौन था स्पेनिश फ़्लू से सबसे ज़्यादा प्रभावित?

डॉ. अदलजा कहते हैं कि 5 साल और 65 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों में मृत्यु दर अधिक थी। लेकिन वयस्क (उम्र 20 से 40) सबसे अधिक जोखिम में थे। डॉ. नरसिम्हन का कहना है कि गर्भवती महिलाओं में भी मृत्यु दर ज़्यादा थी। बहुत अलग जनसांख्यिकीय समूहों में होने वाली मौतें स्पैनिश फ्लू और COVID-19 के बीच का एक बड़ा अंतर हैं।

ज़्यादा ख़तरनाक़ कौन?

अप्रैल माह तक विश्वभर में कोरोना से हुई मौतों की संख्या 30 लाख को पार कर चुकी है। यह आँकड़ें लागातार बदल रहे हैं और नए म्यूटेशन से इनमें और भी बदलाव दिख सकता है।

स्पेनिश फ़्लू की पहली वेव में मौतों की संख्या ज़्यादा नहीं थी। उस लिहाज़ से इसकी दूसरी वेव ने यूरोपीय देशों को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया और बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी जान गँवाई। इसकी तीसरी वेव ने सबसे ज़्यादा तबाही मचाई जहाँ यह इन्फ़्लुएन्ज़ा तेज़ी से फ़ैलने लगा और इस बार होने वाली मौतों ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए।

ग़ौरतलब है कि स्पेनिश फ़्लू से हुई मौतों का सटीक आँकड़ा मौजूद नहीं है लेकिन अनुमान लगाया जाता है कि दुनियाँभर में इस फ़्लू से 2 से 5 करोड़ लोगों ने अपनी जान गँवाई।
सीडीसी का कहना है कि दुनिया की एक तिहाई आबादी वायरस से संक्रमित थी, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 5 करोड़ मौतें हुईं।

स्पेनिश फ़्लू से इतनी मौतें क्यों हुईं?

इसकी पहली वजह तो ये है कि 1918-19 में दुनिया की स्वास्थ्य व्यवस्था उतनी विकसित नहीं थी जितनी कि आज है। डॉ.पोल्स्की बताते हैं, “ध्यान रखें कि इन्फ्लूएंज़ा से संबंधित कई मौतें वास्तव में माध्यमिक जीवाणु संक्रमण के कारण होती हैं, जो आज हम एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इलाज करते हैं, और यह 1918-19 में पूरी तरह से अनुपलब्ध थे,” इसके अलावा उन्होंने आधुनिक मैकेनिकल वेंटिलेशन और ईसीएमओ (एक्सट्रॉस्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन) का भी ज़िक़्र किया जो उस समय इंसान की पहुँच से दूर थे।

डॉ. नरसिम्हन बताती हैं कि उस समय कोई भी वैक्सीन या एंटीवायरल एजेंट उपलब्ध नहीं था। “हमारे पास वैक्सीन विकास के लिए वैज्ञानिक प्रगति नहीं थी, जो संचरण को रोकती थी और रोग की गंभीरता और मृत्यु दर को कम करती थी।”

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इसके अलावा, स्वच्छता के मानक 100 साल पहले कम थे। “लेकिन दिलचस्प बात यह है कि उस समय के दौरान दी गई सलाह, जो हम COVID-19 के लिए सलाह देते हैं, के समान है। मास्किंग, बीमार लोगों से दूर रहना और हाथ धोना,” डॉ. नरसिम्हन ने बताया।

क्या आ सकती है कोरोना की तीसरी वेव?

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि स्पेनिश फ़्लू और कोरोना के बीच कई समानताएँ हैं। इस बाबत स्पेनिश फ़्लू की तीन वेव आई थी। और अब जब विश्वभर में कोरोना वायरस की दूसरी लहर दस्तक दे चुकी है तब तीसरी लहर की आशंका नामुमकिन नहीं लगती। हालाँकि इस वेव को बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था और वायरस के प्रति जागरूकता से रोका जा सकता है। अब वैक्सीन भी हमारे बीच है इसलिए हमें वायरस के सभी रूपों को पहचानकर उसके इलाज के कारगर तरीक़े ढूंढने होंगे। अगर हमे कोरोना की  तीसरी लहर को रोकना है तो हमको सोशल डिस्टन्सिंग , मास्क और वैक्सीन का सही उपयोग करना होगा। 

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