क्या अग्निपथ हिंसा था बहाना? सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान था पहुंचना

by Sachin Singh Rathore
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आज देश में सरकारी फैसलों का विरोध करते हुए उसका हिंसा में बदल जाना आम बात हो गई है। अग्निपथ योजना को लेकर जिस तरह से बिहार और अन्य राज्यों में बवाल मचा और जिस तरह से सरकारी और निजी संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया गया इससे साफ तौर पर जाहिर होता है कि विरोध करने वाले विरोधी कम दंगाई अधिक प्रतीत होते हैं। आपको बता दें एक आंकड़े में कहा गया कि अग्नीपथ योजना के विरोध को लेकर जितनी ट्रेनों को आग के हवाले की गई है उनके नुकसान की कीमत करीबन 700 करोड रुपए मानी जा रही है जिससे 11 नई ट्रेनें खरीदी जा सकती थी।

सरकारी संपत्ति से हम अपनी निजी संपत्ति जैसा व्यवहार क्यों नहीं करते

भारत में एक सबसे बड़ी समस्या यह देखने को मिलते हैं कि प्रदर्शन करने वाले यह समझते हैं कि सरकारी संपत्ति का नुकसान करके वह सरकार नुकसान कर रहे हैं लेकिन सच तो यह है कि भविष्य में इस नुकसान का भरपाई उन्हें अपनी जेब से ही करनी पड़ेगी।आपको बता दें कि प्रदर्शनकारियों के निशान पर बिहार में ट्रेनें रहीं। यह साफ तौर पर दर्शाता है कि हमारी बुद्धि क्षमता कहां तक स्थित है कि हम सरकारी संपत्ति का नुकसान कर खुद के नुकसान को नहीं समझ पा रहे हैं

हिंसक प्रदर्शन और विरोध को रोकने में पुलिस दिख रही थी नाकाम। हिंसक प्रदर्शन को रोकने में असफल रही पुलिस, यह भी एक कमजोर सरकार की निशानी साबित होती है क्योंकि अराजक तत्वों से निपटना और अपने नागरिकों तथा सरकारी संपत्तियों को सुरक्षित रखना पूर्ण जिम्मेदारी सरकार की होती है।

चेहरे पर गमछे तो नकाब में दिखे विरोध प्रदर्शन कर रहे तथाकथित छात्र, क्या यह दर्शाता है कि यह हिंसक प्रदर्शन सुनियोजित था?

मूकदर्शक बनी देखती रही पुलिस

धूं-धूं कर जलती रही, स्टेशन पर खड़ी रेलगाड़ियां।

जलती ट्रेनें, जलता राष्ट्र

विरोध के दौरान हम अपनी ऊर्जा को किस चीज में लगाते हैं यह एक बेहतर समाज के लिए बहुत मायने रखता है। आने वाली पीढ़ी को हम क्या संदेश देते हैं, यह पूरी तरह हमारे आज के किए गए कार्य पर निर्भर करता है।

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