नंदीग्राम में ममता ने क्यों किया चंडी पाठ!

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पश्चिम बंगाल चुनाव की सबसे हॉट सीट नंदीग्राम है और यहाँ इस बार बहुत ही दिलचस्प मुकाबला हो रहा है। इस शीट से इस बार ममता बनर्जी और कभी उनके सबसे भरोसेमंद रहे शुभेंदु अधिकारी के बीच मुकाबला है।तृणमूल कांग्रेस यहां बड़ी जीत दर्ज करती रही है और ये तृणमूल का गढ़ रहा है।  लेकिन ये गढ़ जिसकी वजह से रहा अब वो बीजेपी उमीदवार हैं।

पूरे काडर को सन्देश देने के लिए कि किसी के जाने से तृणमूल को फ़र्क़ नहीं पड़ता लिहाज़ा ममता ने खुद नंदीग्राम से लड़ने का फैसला किया। परंपरागत भवानीपुर सीट उन्होंने छोड़ दी है। लेकिन नंदीग्राम कि लड़ाई आसान नहीं है ममता के लिए. शुभेंदु इस इलाके में काफी लोकप्रिय रहे हैं दूसरा वोटों के ध्रुवीकरण होने कि संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।शुभेंदु दावा कर चुके हैं कि वो 50 ,000 से ज़्यादा वोटों से ममता बनर्जी को हराएंगे।

बंगाल कि सियासत में नंदीग्राम कि अहमियत को समझना ज़रूरी है। इसके लिए 14 साल पहले जाना ज़रूरी है। 2007 में नंदीग्राम में SEZ के तहत सरकार ने केमिकल फैक्ट्री के लिए ज़मीन दी। लोगों ने विरोध शुरू कर दिया। इस आंदोलन का नेतृत्व ममता बनर्जी कर रहीं थी और बड़ी भूमिका शुभेंदु अधिकारी निभा रहे थे। 14 मार्च 2007 को पुलिस के साथ आरोप है कि सत्तारूढ़ दाल के लोग भी थे जिन्होंने गांव पर हमला किया जिसमें 14 लोगों कि मौत हो गई।
2011 के चुनाव में सिंगुर के साथ नंदीग्राम का असर रहा और ममता ने 34 साल पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी कि सरकार को उखाड़ फेंका। मां, माटी, मानुष के नारे में नंदीग्राम कि बड़ी भूमिका रही। ममता बनर्जी इस नारे की वजह से लगातार जीत दर्ज करती रहीं। लेकिन इस चुनाव में वही नंदीग्राम उनकी सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। वोटों के लिहाज से देखें तो यहां करीब 70% हिंदू और 30 मुसलमान हैं। अगर ध्रुवीकरण हुआ तो ममता कि राह मुश्किल होगी।
तृणमूल कि कोशिश है इस ध्रुवीकरण को रोका जाए और इसकी झलक नंदीग्राम में दिखनी शुरू हो गई है।ममता बनर्जी नामांकन के एक दिन पहले ही नंदीग्राम पहुँच गई हैं। उन्होंने लोगों से भावनात्मक अपील की, उन्हें 2007 की घटना याद दिलाई और फिर चंडी पाठ किया। वो मंदिर भी गईं और बाद में मज़ार पर चादर चढाने भी पहुंची। किसी चुनावी सभा में ममता पहली बार इतनी धार्मिक नज़र आयी हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या तृणमूल के परंपरागत वोट पार्टी को ही मिलेंगे या फिर वो शुभेंदु अधिकारी के साथ बीजेपी में जा मिले हैं. इस सवाल के जवाब के लिए 2 मई का इंतज़ार करना होगा।

-मिहिर गौतम-

( लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार है )

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