क्यों चीन का तानाशाह सादे काग़ज़ से डरता है – मिहिर गौतम

by motherland
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चीन से आ रही तस्वीरें स्वाभाविक हैं और इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। हर तस्वीर साहस और हौसले की कहानी है। क्रूर शासन के सामने मजबूती से खड़ा होना आसान नहीं होता है। लेकिन  जब अधिकार पूरी तरह ख़त्म कर दिए जाएं और घरों को जेलों में तब्दील कर दिया जाए और बिना किसी गुनाह के लोगों को क़ैदी बना दिया जाए तो आवाज़ तो  उठेंगी। पहले भी उठी हैं लेकिन उसे क्रूरता से दबा दिया गया।
चीन में इस बार विरोध प्रदर्शन का दायरा बहुत बड़ा है। वुहान से लेकर राजधानी बीजिंग,शंघाई से लेकर ग्वानझाऊ तक लोग सड़कों पर निकल आए हैं।

क्रूर शासक उन्हें दबाने के लिए लगातार ताक़त का प्रदर्शन कर रहा है। लेकिन फिलहाल चीन की असली जनता झुकने को तैयार नहीं है। कहीं ज़बरदस्ती जेल बनाने में इस्तेमाल बैरिकेड गिराए जा रहे हैं तो कहीं सादे कागज़ को लहराकर विरोध जताया जा रहा है। हैरानी की बात है कि सादे काग़ज से भी तानशाह डरता है। जो लोग विरोध में सादा काग़ज़ लेकर खड़े हैं उन्हें बेरहमी से पीटा जा रहा है। एक को पीट रहे हैं तो 100 नए सामने आ रहे हैं। जनता का नारा स्पष्ट है कम्युनिस्ट पार्टी डाउन डाउन, शी जिनपिंग इस्तीफ़ा दो।

दरअसल चीन में हुआ क्या इसे पहले समझते हैं। चीन में कोरोना के मामले बढ़े हैं लेकिन इसमें 90% मामले बिना किसी लक्षण वाले मरीजों के हैं। बावजूद चीन की सरकार ने लोगों को घरों में क़ैद कर दिया। लोहे के बैरिकेड लगा दिए जिससे वो बाहर ना निकलें। जिनमें लक्षण दिखा उनके साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया  गया और ज़बरदस्ती अस्पताल में ठूंसने लगे। एक इमारत में आग लगी , लोग जलकर मर गए लेकिन बैरिकेड नहीं हटाए गए, लोगों को निकलने नहीं दिया गया। कई लोगों की मौत हो गई।

इससे पहले ऐप्पल आईफोन फैक्ट्री में संघर्ष हुआ। श्रमिकों का आरोप है कि उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता है। इन दोनों घटनाओं ने लोगों के दबे गुस्से को बाहर ला दिया। चीन में ये सब सालों से हो रहा है। जब कोरोना पहली लहर आई तो पूरी दुनिया ने देखा कि किस क्रूरता से चीन ने अपने नागरिकों के साथ व्यवहार किया। ये तमाम बातें लोग भूल नहीं पाए हैं और अब गुस्सा सड़कों पर निकल आया है। उस तानाशाह के ख़िलाफ़ नारे लग रहे हैं जिसने क़ानून बदलकर खुद को फिर से राष्ट्रपति बना लिया। उस कम्युनिस्ट पार्टी के ख़िलाफ़ नारे लग रहे हैं जिसने चीन के लोगों के तमाम अधिकार छीन लिए।

चीन की जनता सड़कों पर है और उसे दबाने के लिए क्रूर तानाशाह रणनीति बनाने में जुटे हैं। उन्हें भरोसा है कि तियानमेन स्कॉव्यर की तरह वो इसे भी दबा देंगे। क्या हुआ था तियानमेन स्कॉव्यर में इसे भी जान लेते हैं।

4 जून, 1989 को कम्युनिस्ट पार्टी के उदारवादी नेता हू याओबैंग की मौत के खिलाफ हजारों छात्र तियानमेन चौक पर प्रदर्शन कर रहे थे, सनकी तानाशाह को ये पसंद नहीं था। हज़ारों छात्रों पर रात में गोली चलाई गई और टैंक से उन्हें कुचला गया। चीनी लोगों का कहना है कि क़रीब 3,000 लोग मारे गए। चीन ने आज तक आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया और ना ही उस घटना के लिए माफ़ी मांगी।

एक तस्वीर जब आप गूगल करेंगे तो आपको ज़रूर दिखेगी जिसमें एक आदमी टैंक को सामने खड़ा है। उस व्यक्ति का क्या हुआ ये आज तक दुनिया को पता नहीं चला।लेकिन वो तस्वीर लोकतंत्र की मांग को लेकर चीन के लोगों के संघर्ष का प्रतीक बन गई। अभी ऐसी कई तस्वीरें सामने आ रही है। एक लड़की वीडियो बना रही है उसे चीन की पुलिस धमकाती है, वो नहीं रुकती है। फिर उसे पकड़कर पीटा जाता है लेकिन वो नहीं डरती है। इसके बाद अचानक से जो वीडियो बना रहा होता है उसके कैमरे पर सुरक्षाकर्मी हाथ मार देता है और वीडियो वहीं रुक जाता है। लेकिन 10 सेकेंड का वीडियो ये बता रहा है कि लोकतंत्र को लिए संघर्ष को चीन की जनता तैयार है और वो इसके लिए अब कम्युनिस्ट पार्टी की फौज से नहीं डरती है।

ईरान की राह पर चीन बढ़ने लगा है। मुद्दा दोनों जगह तानाशाही का विरोध और लोकतंत्र की मांग है। संघर्ष आसान नहीं होता लेकिन वो जीत जाते हैं जो इसकी क़ीमत चुकाने को तैयार हैं। उम्मीद कीजिए कि लोकतंत्र का सूरज चीन और ईरान में भी चमके और तानाशाही की काली रात का अंत हो।

लेखक -मिहिर गौतम, न्यूज़ एडिटर, एनडीटीवी

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