बंगाल चुनाव के बीच अचानक यशवंत सिन्हा सुर्ख़ियों में आ गए। कोलकत्ता पहुंचे, ममता बनर्जी से मिले और फिर टीएमसी दफ्तर जाकर पार्टी की सदस्य्ता ले ली। यशवंत सिन्हा बीजेपी के खिलाफ 2014
के बाद काफी मुखर रहे हैं। नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर वो निशाना साधते रहे हैं।ये अलग बात है कि उनके बेटे जयंत सिन्हा पिछली सरकार में मंत्री थे और अभी हज़ारीबाग़ से बीजेपी सांसद हैं।
यशवंत सिन्हा वाजपेयी सरकार में में वित्त और विदेश मंत्री रहे. वो चंद्रशेखर सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं। लेकिन 2014 के बाद बीजेपी में उनकी बहुत ज़्यादा परवाह नहीं की। हालांकि प्रेस कांफ्रेंस और कई रैलियों में शामिल होकर उन्होंने खुद को सियासत में बनाये रखा है।वो लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की रैलियों में भी नज़र आये।तब लग रहा था वो आम आदमी पार्टी में शामिल होंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बिहार चुनाव के वक़्त यूनाइटेड डेमोक्रेटिक अलायन्स बनाई और सभी 243 सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया. लेकिन कोई असर बिहार चुनाव में उनका नहीं दिखा।
भारतीय प्रशासनिक सेवा छोड़ 1984 में जनता पार्टी का दामन थामने के बाद वो लगातार सियासत में अपनी पहचान छोड़ते रहे, लेकिन 2014 के बाद से वो कभी पार्टी तो कभी पार्टी के बाहर अपनी सियासी हैसियत के लिए संघर्ष करते दिखे हैं। तृणमूल में शामिल होने के बावजूद वो बहुत ज़्यादा वोटरों को लुभा पाएंगे ऐसा फिलहाल नहीं दिख रहा है। हालांकि टीएमसी की रणनीति में वो अहम भूमिका निभा सकते हैं।जो भी हो लेकिन 83 साल की उम्र में यशवंत सिन्हा जिस तरह फिट दिखते हैं वो बाकी राजनेताओं और जनता के लिए सीख तो ज़रूर है।
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